मुख्यमंत्री ने आदिवासी अस्मिता : कल, आज और कल विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी को सम्बोधित किया
रायपुर – मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा है कि आदिवासी अस्मिता की रक्षा और आदिवासियों की समृद्धि राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता है। आदिवासियों की संस्कृति और परंपरा को बचाए रखते हुए उनका भौतिक विकास भी जरूरी है। राज्य सरकार आदिवासियों को आर्थिक, शैक्षिक, शारीरिक और मानसिक तौर पर इतना सशक्त बनाना चाहती है कि उनकी लड़ाई के लिए किसी दूसरे की जरूरत ना पड़े। मुख्यमंत्री आज राजधानी रायपुर स्थित न्यू सर्किट हाऊस के सभाकक्ष में ‘आदिवासी अस्मिता: कल, आज और कल’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के दूसरे दिन के तीसरे सत्र को सम्बोधित कर रहे थे। श्री बघेल ने कहा कि पिछले एक वर्ष के कार्यों से आदिवासी समाज में राज्य सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है। प्रदेश में नक्सली घटनाओं में कमी आई है। गोंडवाना स्वदेश पत्रिका द्वारा संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित संगोष्ठी में आदिम जाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, संस्कृति मंत्री श्री अमरजीत भगत और उद्योग मंत्री श्री कवासी लखमा विशेष अतिथि के रूप से उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी अजायबघर में रखने की वस्तु नहीं है। उनके सीने में भी दिल धड़कता है, उनके भी कुछ सपने हैं, जिसे हम सबको मिलकर पूरा करना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासियों की आर्थिक समृद्धि, उनकी मातृ भाषा में शिक्षा, सरकार में भागीदारी, स्वास्थ्य, कुपोषण मुक्ति के लिए अनेक योजनाएं प्रारंभ की हैं। राज्य सरकार में आदिवासी समाज की भागीदारी सुनिश्चित की गई है, तेरह मंत्रियों में चार आदिवासी समाज से हैं। सरगुजा और बस्तर विकास प्राधिकरण में आदिवासी विधायकों को अध्यक्ष और प्रत्येक प्राधिकरण में 2-2 आदिवासी विधायकों को उपाध्यक्ष बनाया गया है। मध्य क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी आदिवासी विधायक हैं। इन्हें केबिनेट तथा राज्य मंत्रियों का दर्जा दिया गया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्य सचिव भी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आदिवासी की अस्मिता उनकी मातृ भाषा से जुड़ी है। बच्चों को उनकी मातृ भाषा में शिक्षा देने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ में दीक्षा एप प्रारंभ किया गया है। जिसके माध्यम से इस वर्ष जुलाई माह से छत्तीसगढ़ी, गोंड़ी, हल्बी, सरगुजिया, कुड़ुख सहित छह भाषा में बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जा रही है। नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में तेरह वर्षों से बंद 105 स्कूल शुरू किए गए हैं। नक्सलियों का मुख्यालय कहे जाने वाले जगरगुण्डा में भी स्कूल प्रारंभ हुआ है, जिसमें 300 बच्चे पढ़ रहे हैं।
श्री बघेल ने कहा कि आदिवासियों को आर्थिक दृष्टि से सशक्त बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अनेक योजनाएं प्रारंभ की गई है। किसानों का ऋण माफ किया गया, धान की कीमत 2500 रूपए प्रति क्विंटल दी गई, तेन्दूपत्ता पारिश्रमिक की दर बढ़ाकर 4000 रूपए प्रति मानक बोरा की गई, सात से बढ़ाकर 15 लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी प्रारंभ की गई, लघु वनोपजों में वेल्यू एडिशन के लिए 110 इकाईयां प्रारंभ की गई हैं। अबुझमाड़ क्षेत्र में महिला स्व-सहायता समूह फूल झाडू बनाकर उसकी मार्केटिंग करके अच्छा लाभ अर्जित कर रही हैं। सरगुजा का जवाफूल चावल सर्टिफिकेशन के बाद अब 120 रूपए प्रति किलो में बेचा जा रहा है। सरकार की योजनाएं हर व्यक्ति के विकास पर केन्द्रित है। स्थानीय आदिवासी युवाओं को सरकारी नौकरी में स्थान देने के लिए बस्तर और सरगुजा में कनिष्ठ चयन बोर्ड का गठन किया जा रहा है। जिसके माध्यम से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों में आदिवासी युवाओं को मौका मिलेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए सबसे बड़ी चुनौती कुपोषण से मुक्ति है। प्रदेश के आदिवासी अंचल के जिलों में कुपोषण राज्य के स्तर से काफी अधिक है। आने वाली पीढ़ियां सशक्त हों। इसके लिए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत की गई है, जिसमें बच्चों को उनकी पसंद का भरपूर भोजन मिलता है। मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावी रूप से आदिवासी इलाकों में पहुंच रही है। वन अधिकार कानून के तहत निरस्त किए गए आवेदनों की समीक्षा कर पुनः वनांचलों के परांपरागत निवासियों को व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार पट्टे देने का काम प्रारंभ किया गया है। कोण्डागांव जिले के आठ गांवों में 9000 एकड़ में और धमतरी जिले के एक गांव जबर्रा में 12 हजार 500 एकड़ भूमि का सामुदायिक पट्टा दिया गया है। बस्तर में छोटे-छोटे अपराधों में जेल में बंद लोगों को रिहा करने के लिए उनके प्रकरणों की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में आयोग गठित किया गया है। जिसमें समीक्षा के बाद 105 प्रकरणों की रिपोर्ट भेजी है। जिन्हें जल्द रिहा किया जाएगा। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां लोहाण्डीगुड़ा में आदिवासियों की जमीन राज्य सरकार द्वारा वापस कर दी गई है। आदिवासी इलाकों में निर्माण कार्यों को अलग-अलग हिस्सों में बांट कर स्थानीय आदिवासी युवाओं को निर्माण कार्य के ठेके देने के निर्देश दिए गए हैं। जिससे वे आर्थिक रूप से मजबूत हो सकें।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि बस्तर के 700 गांव के लोग तेलंगाना और आंध्रप्रदेश चले गए हैं, जिन्हें हम वापस लाना चाहते हैं, लेकिन वे लोग वहां से आना नहीं चाहते क्योंकि उनकी आमदनी वहां ज्यादा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी समाज को सभी लोगों के साथ लेकर आगे बढ़ाना चाहती हैं। राज्य सरकार आर्थिक, शैक्षिक और शारीरिक रूप से इतना मजबूत बना चाहती है कि उनकी लड़ाई लड़ने के लिए दूसरों की जरूरत नहीं हो। हमारी समृद्ध विरासत और परंपरा रही है। छत्तीसगढ़ की हर काल में निर्णायक भूमिका रही है। संगोष्ठी में महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के बौद्व अध्ययन केंद्र के निर्देशक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, दिल्ली के प्रोफेसर वर्जिनियस खाखा, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कोलकाता केंद्र के प्रभारी निदेशक डॉ. सुनील कुमार सुमन, जामिया मिलिया इस्लोमिया नई दिल्ली के हिंदी विभाग की प्रोफेसर हेमलता महिश्वेर ने अपने विचार प्रकट किए। गोण्डवाना स्वदेश मासिक पत्रिका के संपादक श्री रमेश ठाकुर सहित अनेक बुद्धिजीवी और शोधार्थी इस अवसर पर उपस्थित थे।