आंध्रप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, केरल, छत्तीसगढ़ औरमध्यप्रदेश के कलाकारों ने बिखेरी संस्कृति की झलक
रायपुर – कर्नाटक के वनांचल क्षेत्रों में फसल कटाई के समय गाया जाने वाला सामूहिक कोलाट नृत्य ने दर्शकों का मनमोह लिया। पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे इन लोक कलाकारों की प्रस्तुति देखते ही बन रही थी। लोकभाषा में गायन और संगीत ने कोलाट नृत्य में नया रंग भर दिया। कोलाट नृत्य की प्रस्तुति गुजरात की डांडिया नृत्य के समान थी। डांडिया के मुकाबले इसमें गति कम थी, लेकिन कदमों का लय और संयोजन इसे अलग स्तर दे रहा था। साइंस कालेज मैदान में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में आज आंध्रप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, केरल, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी।आंध्रप्रदेश का कोमकोया नृत्य मांदर की थाप पर किया गया। पुरूषों और महिलाओं द्वारा प्रस्तुत यह नृत्य वैवाहिक संस्कार और रीति-रिवाजों पर आधारित था।
परम्परागत रंग-बिरंगे वस्त्रों में सजे लोक कलाकारों ने बायसन हार्न पहनकर जब थिरकना शुरू किया, तब उनकी प्रस्तुति देखते ही बनती थी। आंध्रप्रदेश से आए एक अन्य नर्तक दल ने पारंपरिक वेशभूषा पहनकर वाद्ययंत्रों के धुन पर कल्चिरा नृत्य, मयूर ढिमशा नृत्य और डफला नृत्य की प्रस्तुति दी। समारोह में मध्यप्रदेश का बैगानी कर्मा नृत्य, अरूणाचल प्रदेश का पोनू नृत्य और केरल के नर्तक दलों ने नाटक शैली में वाद्ययंत्रों की धुन में एकलय एवं सूरताल के साथ गीत-नृत्य प्रस्तुत दी। मयूर ढिमशा नृत्य में लोक कलाकारों ने पारंपरिक वादयंत्रों के साथ चटक परिधानों में प्रस्तुति दी। यह नृत्य फसल कटाई के समय किया जाता है। समारोह में मध्यप्रदेश के शैला नृत्य, छत्तीसगढ़ के हूलकी नृत्य की प्रस्तृति भी दी गई।