बागबाहरा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नर्रा गांव में स्थित छत्तीसगढ़ के प्रत्यक्ष भोसला शासन के प्रथम मराठा शासक श्री बिम्बाजी भोंसले की समाधि स्थल का सौंदर्यीकरण करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री के द्वारा की गई घोषणा के बाद भोसला परिवार ग्राम नर्रा पहुँचकर उनके समाधि स्थल पर जाकर श्रध्दांजलि दी।
नागपुर भोसले शासक परिवार के उत्तराधिकारी श्रीमंत मुधो जी राजे भोसले ने श्रीमंत बिम्बाराव जी की समाधि पर पांच घी दीपक जला कर पुष्पांजलि अर्पित की। मुधो जी समाधि एवं उस पर रखे तलवार की मुठ को देख भाव विभोर हो उठे और ग्राम वासी को कोटि कोटि आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यहां के जमीदार परिवार ने समाधि की सुरक्षा व परिवार की तरह 300 साल से सम्हाला। उन्होंने आभार व्यक्त करते हुए अपने हाथों से पुष्पमाला से सम्मान करते हुए अभिवादन किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा का स्वागत करते हुए, स्थानीय लोगो से योजना बनाने व बुद्धिजीवियों से सहयोग की अपील की, उन्होंने कहा नागपुर भोसला परिवार यथासंभव नर्रा के विकास के लिए अच्छी शिक्षा, लाइब्रेरी, संग्रहालय के निर्माण में सहयोग देने की कामना की। डॉ विजय शर्मा ने मराठा इतिहास पर प्रकाश डालते हुए समाधि व उमादेवी सती स्तम्भ परकोटे एवं यहां के इतिहास के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि श्रीमन बिम्बा जी राव भोसले जनजातीय विद्रोह को कुचलने इस क्षेत्र में 1787 को आए, गन्धमर्दन क्षेत्र में उन्होंने डेरा डालकर विद्रोह को दबाने मे काफी सफल भी हुए , आज उस स्थान को राजा डेरा के नाम से भी जानते हैं। इस दौरान गुरिल्ला युद्धनीति में उन्हें विषबुझा तीर लगी, ततपश्चात उन्हें सुरक्षित नर्रा लाया गया, व उनका उपचार नर्रा में किया गया, राजकीय उपचार के बाद भी उन्हें नही बचाया जा सका। उनका 25 दिसम्बर 1787 को निधन हुआ। उनकी समाधि में ब्रिटिश काल तक घी के दिए जलाए जाते थे। 300 से अधिक वर्षो तक नर्रा जमीदारों ने समाधि की पूजा व देखरेख कर सुरक्षित रखा।
डॉ विजय शर्मा की पुस्तक “सुअरमार गढ़ का इतिहास” में नर्रा व बिम्बाराव जी की समाधि के बारे में प्रकाशित पुस्तक ने मराठा समाज व नागपुर भोसले परिवार को आकर्षित किया।नर्रा गाँव मे आज भी बिम्बाजी भोसले की समाधि स्थल पर ग्रामीण अपनी श्रद्धा रखते है।
तत्कालीन समय मे नर्रा जमींदारी सबसे छोटा व सुरक्षित जमीदारी मानी जाती थी। उन्होंने 84 गांव जमींदारी एवं 12 गांवों के समुह को बरहों का नाम तालुका रखा गया नर्रा उन्हीं बरहों में एक था, यहां के दीवान को यहां के अधिकारी नियुक्त किए गए इनके अधिकारी को पटेल कहते थे। गांव का अधिकारी गौटिया ज्यों का त्यों रहे और वे मालगुजार भी कहलाने लगे किसानों से किस्तों में लगान वसूली की जाती थी। जमींदारों के ऊपर कमाविशदारों की नियुक्ति की गई जो मनमानी राशि वसूल करते थे, कमाविशदारों की प्रथा जब असफल हुई तब ताहुत दारी प्रथा कायम की गई, निकटवर्ती ग्रामों का एक चक बना दिया गया, आज भी सामाजिक दृष्टि से कोमाखान, बकमा देवरी, नर्रा, टेमरी, गांजर, बागबाहरा, खल्लारी आदि चक के नाम से सामाजिक व्यवस्था आज भी कायम है। नर्रा जमीदारी के अंतर्गत 16 गांव आते थे जिसमें नर्रा, कोकड़ी, मुडपार, झिटकी, पंडरीपानी, बोहराभाठा, बनियातोरा, राटापाली, कारागुला, परकोम, परसुली, सेनभाठा, अमनपुरी, खट्टी,भालुकोना, झलमला हैं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नर्रा गांव में स्थित छत्तीसगढ़ के प्रत्यक्ष भोसला शासन के प्रथम मराठा शासक श्री बिम्बाजी भोंसले की समाधि स्थल का सौंदर्यीकरण करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री के द्वारा की गई घोषणा के बाद भोसला परिवार ग्राम नर्रा पहुँचकर उनके समाधि स्थल पर जाकर श्रध्दांजलि दी।
नागपुर भोसले शासक परिवार के उत्तराधिकारी श्रीमंत मुधो जी राजे भोसले ने श्रीमंत बिम्बाराव जी की समाधि पर पांच घी दीपक जला कर पुष्पांजलि अर्पित की।
मुधो जी ने समाधि एवं उस पर रखे तलवार की मुठ देख भाव विभोर हो उठे और ग्राम वासी को कोटि कोटि आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यहां के जमीदार परिवार ने समाधि की सुरक्षा व परिवार की तरह 300 साल से सम्हाला। उन्होंने आभार व्यक्त करते हुए अपने हाथों से पुष्पमाला से सम्मान करते हुए अभिवादन किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की घोषणा का स्वागत करते हुए, स्थानीय लोगो से योजना बनाने व बुद्धिजीवियों से सहयोग की अपील की, उन्होंने कहा नागपुर भोसला परिवार यथासंभव नर्रा के विकास के लिए अच्छी शिक्षा, लाइब्रेरी, संग्रहालय के निर्माण में सहयोग देने की कामना की। डॉ विजय शर्मा ने मराठा इतिहास पर प्रकाश डालते हुए समाधि व उमादेवी सती स्तम्भ परकोटे एवं यहां के इतिहास के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि श्रीमन बिम्बा जी राव भोसले जनजातीय विद्रोह को कुचलने इस क्षेत्र में 1787 को आए, गन्धमर्दन क्षेत्र में उन्होंने डेरा डालकर विद्रोह को दबाने मे काफी सफल भी हुए , आज उस स्थान को राजा डेरा के नाम से भी जानते हैं। इस दौरान गुरिल्ला युद्धनीति में उन्हें विषबुझा तीर लगी, ततपश्चात उन्हें सुरक्षित नर्रा लाया गया, व उनका उपचार नर्रा में किया गया, राजकीय उपचार के बाद भी उन्हें नही बचाया जा सका। उनका 25 दिसम्बर 1787 को निधन हुआ। उनकी समाधि में ब्रिटिश काल तक घी के दिए जलाए जाते थे। 300 से अधिक वर्षो तक नर्रा जमीदारों ने समाधि की पूजा व देखरेख कर सुरक्षित रखा।
डॉ विजय शर्मा की पुस्तक सुअरमार गढ़ का इतिहास में नर्रा व बिम्बाराव जी की समाधि के बारे में प्रकाशित पुस्तक ने मराठा समाज व नागपुर भोसले परिवार को आकर्षित किया।
नर्रा गाँव मे आज भी बिम्बाजी भोसले का समाधि स्थल पर ग्रामीण अपनी श्रद्धा रखते है।
तत्कालीन समय मे नर्रा जमींदारी सबसे छोटा व सुरक्षित जमीदारी मानी जाती थी। उन्होंने 84 गांव जमींदारी एवं 12 गांवों के समुह को बरहों का नाम तालुका रखा गया नर्रा उन्हीं बरहों में एक था, यहां के दीवान को यहां के अधिकारी नियुक्त किए गए इनके अधिकारी को पटेल कहते थे। गांव का अधिकारी गौटिया ज्यों का त्यों रहे और वे मालगुजार भी कहलाने लगे किसानों से किस्तों में लगान वसूली की जाती थी। जमींदारों के ऊपर कमाविशदारों की नियुक्ति की गई जो मनमानी राशि वसूल करते थे, कमाविशदारों की प्रथा जब असफल हुई तब ताहुत दारी प्रथा कायम की गई, निकटवर्ती ग्रामों का एक चक बना दिया गया, आज भी सामाजिक दृष्टि से कोमाखान, बकमा देवरी, नर्रा, टेमरी, गांजर, बागबाहरा, खल्लारी आदि चक के नाम से सामाजिक व्यवस्था आज भी कायम है। नर्रा जमीदारी के अंतर्गत 16 गांव आते थे जिसमें नर्रा, कोकड़ी, मुडपार, झिटकी, पंडरीपानी, बोहराभाठा, बनियातोरा, राटापाली, कारागुला, परकोम, परसुली, सेनभाठा, अमनपुरी, खट्टी,भालुकोना, झलमला हैं।
बिम्बाजी भोसले:
- इन्होंने नागपुर के सहायक के रूप में शासन किया।
- रायपुर तथा रतनपुर का एकीकरण किया।
- परगना पद्धति की सुरुवात की
- राजनांदगांव तथा खुज्जी जमींदारी प्रारम्भ की
- रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की।
- इन्होंने 1775 में चागबखार रियासत पर आक्रमण कर टकोली देने पर बाध्य किया तथा कोरवा जमींदार के विरोध की वजह से जमींदारी जब्त की। खैरागढ़ के जमींदार ने भी टकोली का विरोध किया जिसके लिए उन्हें दण्डित किया गया। खैरागढ़ पर 1768 में बिम्बाजी ने फिर 1784 में भास्करपंथ ने आक्रमण किया।
- राजस्व पद्धति आरम्भ की परंतु राजस्व का हिस्सा नागपुर नहीं भेजते थे।
- विजयादशमी के पर्व में स्वर्ण पत्र देने की परंपरा सुरुवात की।
- रतनपुर के रामटेकरी में राम मंदिर का निर्माण कराया।
- रायपुर के बूढ़ा तालाब की नींव रखी। जिसे बाद में महीपतराव के दिनकर ने पूरा बनवाया।
- उन्होंने मराठी, गोड़ी, उर्दू को प्रचलित किया।
- रायपुर के दूधाधारी मठ का पुनः निर्माण कराया
- बिम्बाजी की तीन पत्नियां थी। आनंदी बाई, उमा बाई, रमा बाई
- 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु होने पर उमा बाई सती हुई।
- यूरोपीय यात्री कोलब्रुक के अनुसार इनका शासन लोककल्याणकारी था।
- इन्होंने नागपुर के सहायक के रूप में शासन किया।
- रायपुर तथा रतनपुर का एकीकरण किया।
- परगना पद्धति की सुरुवात की
- राजनांदगांव तथा खुज्जी जमींदारी प्रारम्भ की
- रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की।
- इन्होंने 1775 में चागबखार रियासत पर आक्रमण कर टकोली देने पर बाध्य किया तथा कोरवा जमींदार के विरोध की वजह से जमींदारी जब्त की। खैरागढ़ के जमींदार ने भी टकोली का विरोध किया जिसके लिए उन्हें दण्डित किया गया। खैरागढ़ पर 1768 में बिम्बाजी ने फिर 1784 में भास्करपंथ ने आक्रमण किया।
- राजस्व पद्धति आरम्भ की परंतु राजस्व का हिस्सा नागपुर नहीं भेजते थे।
- विजयादशमी के पर्व में स्वर्ण पत्र देने की परंपरा सुरुवात की।
- रतनपुर के रामटेकरी में राम मंदिर का निर्माण कराया।
- रायपुर के बूढ़ा तालाब की नींव रखी। जिसे बाद में महीपतराव के दिनकर ने पूरा बनवाया।
- उन्होंने मराठी, गोड़ी, उर्दू को प्रचलित किया।
- रायपुर के दूधाधारी मठ का पुनः निर्माण कराया
- बिम्बाजी की तीन पत्नियां थी। आनंदी बाई, उमा बाई, रमा बाई
- 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु होने पर उमा बाई सती हुई।
- यूरोपीय यात्री कोलब्रुक के अनुसार इनका शासन लोककल्याणकारी था।