पहाड़ो पर विराजमान माता चंडी के भक्त है भालू परिवार

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हजारों भक्तों द्वारा जलाई जाती है आस्था की जोत

भारत में दैवीय चमत्कारों और आध्यात्मिक शक्तियों के लिए कई मंदिर तथा धार्मिक स्थल प्रसिद्ध हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बागबाहरा में स्थित चंडी देवी का मंदिर हर रोज होने वाली एक घटना के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में केवल इंसान ही पूजा नहीं करते हैं बल्कि हर रोज भालुओं का एक परिवार भी माता के दर्शन के लिए पहुंचता है। मंदिर में हर रोज सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं, जब वे शाम की आरती के समय भालुओं द्वारा माता की भक्ति का यह नजारा देखते हैं तो उनकी सांसें थम जाती हैं।

छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के बागबाहरा नगर के करीब घूंचापाली गांव में स्थित है। भालुओं की भक्ति देखकर यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है। यहां चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक रूप से प्रतिष्ठित है। मंदिर में आने वाले भक्त श्रद्धालु भालुओं को देखने के लिए कई बार घंटों इंतज़ार करते हैं। सालों से माता के मंदिर में शाम ढलते ही इन विशेष भालू भक्तों का आना शुरू हो जाता है। हर शाम आरती के समय भालू का पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है। माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है।

जब भालुओं का परिवार आता है तो इनमें से एक भालू मंदिर के बाहर खड़ा रहता है, फिर बाकी के भालू मंदिर में प्रवेश करते हैं। इसके बाद पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में आकर श्रद्धालुओं के साथ पूरी तरह दोस्ताना व्यवहार करते दिखते हैं जैसे कोई पालतू जानवर हों।

प्रसाद लेने के बाद भालुओं का पूरा परिवार चुपचाप जंगल की ओर लौट जाता है। गांव के निवासी बताते हैं कि भालू कभी भी हिंसक नहीं होते और ना ही आजतक उन्होंने किसी को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि कभी-कभी वो नाराजगी का इजहार जरूर करते हैं लेकिन कभी किसी को परेशान नहीं करते।आसपास के गांव वाले उन भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि माता के मंदिर में भालुओं और इंसानों के बीच होनेवाला आमना-सामना हैरानी की बात है। उनका कहना है कि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो हमले की पूरी आशंका रहती है। श्रद्धालुओं से भालू इस तरह से पेश आते हैं जैसे घर का ही कोई सदस्य हों।

मान्यता हैं कि चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था, यहां कई साधु-संतों का डेरा था। तंत्र साधना करनेवालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया। प्राकृतिक रूप से बनी साढ़े 23 फुट ऊंची दक्षिण मुखी माँ चंडी प्रतिमा का विशेष धार्मिक महत्व है।

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