बागबाहरा – प्रजापिता ब्रम्हकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा व गीता ज्ञान यज्ञ के तृतीय दिवस की कथा को प्रारम्भ करते हुए व्यास पीठ पर विराजित ब्रम्हकुमारी नेहा दीदी ने कहा कि मानव मात्र की सेवा ही सभी धर्मों का सार है। उन्होंने कहा कि ईश्वर प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग निष्काम कर्म करते रहना व परिणाम की चिंता न करना बताया। उन्होंने कथा के माध्य्म से बताया कि कैसे दैनिक क्रियाकलापों में आज मानव इस कदर उलझ गया है कि व्यक्तिगत स्वार्थ के आगे उसने अपनी मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर दिया है। इसी स्वार्थ सिद्धि के चलते मानव से कोई न कोई पाप हो जाता है। अत: पाप से मुक्ति के लिये मानव को हर क्षण प्रयत्नशील रहना चाहिये। इसका एकमात्र मार्ग है कि वह प्रतिक्षण उस परमात्मा से साक्षी भाव से एकात्मता अनुभव करें जिससे मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिल सके। उन्होंने कहा भगवत कथा को हमें एकाग्रचित होकर सुनना चाहिए और जितने विश्वास के साथ हम भगवान की कथा सुनते हैं उतना ही फल हमें अधिक प्राप्त होता है। दुनिया में कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जो भगवान की कथा से बड़ा हो।उन्होंने कहा कि श्रीमदभागवत की कथा श्रवण मात्र से जीवन की सारी व्यथा दूर हो जाती है। ब्रम्हकुमारी नेहा दीदी ने बताया कि वर्तमान सदी को तनाव और अवसाद की सदी कहा जाना कोई अतिश्योक्ति नही होगी , आधुनिक मशीनीकरण के युग मे अव्यवस्थित एवं भौतिकवादी जीवनशैली के कारण तनाव दिन प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है । नकारात्मक दृष्टिकोण और व्यर्थ विचारों के कारण मनुष्य तनाव के चक्रव्यूह में घिर चुका है । डायबिटीज , उच्च रक्तचाप , डिप्रेशन , हृदयरोग और मोटापा जैसे अनेकानेक बीमारियां बढ़ती जा रही है ऐसे समय मे श्रीमद्भागवत गीता ही एकमात्र ऐसा अद्वितीय ग्रंथ है जिसके सिद्धांतो को समझने से न सिर्फ व्यक्तिगत समस्याओं से हल मिलता है बल्कि राष्ट्रीय एवं वैश्विक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है । श्रीमद्भागवत गीता दैहिक , दैविक और भौतिक संतापों की औषधि है , यह जीवन जीने की कला है अर्थात आज के युग मे अर्जुन रूपी मानव जाति को पुनः गीता ज्ञान सुनने की आवश्यकता है ।