भले ही छह पैसे में एक बीड़ी खरीदना भी नामुमकिन हो लेकिन इसी छह पैसे ने केन्द्र की मोदी सरकार को न सिर्फ झकझोर दिया बल्कि उसे होश में भी ला दिया। इसी छह पैसे की बदौलत देश की एक मरणासन्न नवरत्न कम्पनी को आक्सीजन भी मिल गई।
बिल्कुल सही समझा आपने, मात्र एक दशक पहले तक टेलीकॉम सेक्टर की हैवीवेट सरकारी कम्पनी बीएसएनएल को केन्द्र सरकार की सब कुछ बेच देने की मानसिकता के चलते ऐसी बीमारी हुई कि वह अपने आखिर दिन गिन रही थी। सरकार के बड़बोले मंत्री मुकेश अंबानी की जियो पर ऐसे फिदा थे कि उन्होंने बीएसएनएल को बेलआउट पैकेज देने तक से मना कर दिया। तभी उसके मौत के वारंट पर हस्ताक्षर करने की तैयारी में जुटी मुकेश अंबानी की जियो ने उसे छह पैसे का ऐसा झटका दिया कि सरकार हड़बड़ा कर खड़ी हो गई और उसने बुधवार को केबिनेट की मीटिंग में यह प्रस्ताव पारित कर दिया कि बीएसएनएल को बंद नहीं किया जाएगा। उसे न सिर्फ चलाया जाएगा बल्कि खड़ा होने के लिए बेलआउट पैकेज भी दिया जाएगा।
असल में निजी कम्पनी को पछाड़ते हुए मुकेश अंबानी की जियो ने आईयूसी {इंटर कनेक्ट चार्ज} का विरोध करते हुए उपभोक्ताओं से किया गया वादा तोड़ दिया और उपभोक्ताओं से वॉइस कॉल पर छह पैसे प्रति मिनट का चार्ज थोप दिया। दूसरी कम्पनियों विशेषकर बीएसएनएल के ग्राहकों को लगातार निगल रही जियो की इस हरकत से टेलीकॉम सेक्टर में हड़कम्प मच गया और सरकार की नींद खुल गई क्योंकि जियो के नेटवर्क पर उसके वे वोटर हैं जो उसकी जान हैं अर्थात युवाओं का एक बड़ा वर्ग जियो की मुफ्त कॉल सेवा से जुड़ा हुआ था और उसे छह पैसे प्रति मिनट का शुल्क बिल्कुल पसंद नहीं आया।
शुल्क लागू करते ही उसके खिलाफ ट्वीट और टिप्पणियों की बाढ़ आ गई। ज्यादातर ने इसे जियो की वादाखिलाफी माना। चूंकि ये सरकार के कार वोटरों की प्रतिक्रिया थी। इससे उसे जल्द ही यह समझ आ गया कि अगर बीएसएनएल की मौत के वारंट पर हस्ताक्षर किए तो मुकेश अंबानी की जियो जल्द ही संचार सेवाओं को महंगा कर सकती है और उस वक्त सरकार उस पर लगाम नहीं डाल पाएगी। टेलीकॉम सेक्टर के जानकारों का मानना है कि अगर मुकेश अंबानी छह पैसे प्रति मिनट का शुल्क नहीं लगाते तो बीएसएनएल को बंद कर दिया जाता और उसके बाद बाजार पर उनका एकछत्र राज होता।