सैकड़ो वर्षों की परंपरा टूटी , नही निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

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बागबाहरा –  कोरोना संक्रमण काल के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पर रोक लगा दी है । रथयात्रा के दौरान हजारों की संख्या में आये श्रद्धालुयों के चलते कोरोना संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ सकता है जिसको मद्देनजर रखते हुए रथयात्रा नही निकालने का फैसला लिया गया है । बागबाहरा में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में आस पास के दर्जनों गांवों के हजारों लोग इस रथयात्रा को देखने आते है नगर में रथ यात्रा के दौरान मेले से माहौल रहता है । भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा नगर के श्री राम जानकी मंदिर से निकल कर मुख्य मार्ग होते हुए दुर्गा मंदिर में समाप्त होती है भगवान जगन्नाथ , सुभद्रा एवं बलभद्र यही विश्राम करते है ।

सैकड़ो वर्ष पुरानी है यहां की रथयात्रा की परंपरा – बागबाहरा नगर के श्री राम जानकी मंदिर की स्थापना के बाद से ही यहा के महंत रामशरण दास ने भगवान जगन्नाथ के रथयात्रा का शुभारंभ किया था । जानकारी के अनुसार इस रामजानकी मंदिर का का निर्माण भी सैकड़ो वर्ष पूर्व हुआ है जिसका प्रमाण देता यह राम जानकी का मंदिर जिसका मुख पूर्व दिशा की ओर है  पौराणिक कथाओं के अनुसार अधिकतर मंदिरों का निर्माण तालाब अथवा नही के किनारे किया जाता था ताकि लोग स्नान करने के तुरंत बाद ही भगवान के दर्शन कर सके उसी तर्ज में यह मंदिर खंभा तालाब के किनारे पूर्व दिशा में मुख्य करके बनाया गया था ।

भगवान के स्वास्थ्य ठीक करने के लिए बनाया गया काढ़ा

ये है रथयात्रा से जुड़ी बातें – रथ यात्रा के पीछे का पौराणिक कथाओं में  मत यह है कि स्नान पूर्णिमा यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन जगत के नाथ श्री जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। उस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।
108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है। फिर मान्यता यह है कि इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है।
तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है।
15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।

धूमधाम से निकलता है भगवान जगन्नाथ की यात्रा –  नगर में विगत सैकड़ो वर्षों से रथ यात्रा निकाली जा रही है जिसकी शुरुआत महंत राम शरण दास जी ने की थी उनके बाद से जानकी दास , कमला वैष्णव , तिलोत्तमा वैष्णव , पंडित बसंत दुबे , हेमंत दुबे , भोला दास बैरागी , शाश्वत बैरागी भावी बैरागी के द्वारा भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा निकाली जाती है वही नगर में दूसरे रथ को पंडित चेतन महाराज द्वारा निकाला जाता है इस प्रकार नगर में कुल 4 रथ बड़े ही धूमधाम से निकलता है । रथयात्रा को देखने आस पस्य के गांवों के लोग आते है मेले सा माहौल के साथ पूरा नगर भक्तिमय माहौल में रम जाता है ।

कमला वैष्णव (संचालिका भगवान जगन्नाथ रथयात्रा) –  विगत सैकड़ो वर्षों से चली आ रही रथयात्रा की परंपरा इस वर्ष कोरोना संक्रमण काल के कारण स्थगित कर दिया गया है । रथयात्रा के पूर्व भगवान जगन्नाथ की पूजा पाठ तैयार करने की सारी प्रक्रिया पुरी कर ली गई है भगवान जगन्नाथ की शोभायात्रा नजे निकल कर उनके स्थान को ही परिवर्तित किया जाएगा ।

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